हिमप्रस्थ के इस अंक में समाज से जुड़े हुए विषयों पर आलेखों का प्रकाशन किया गया है। अंक में फारसी के दरबारी माहौल में खुसरों की हिंदवी कविता, बदलते दौर में साहित्य के सरोकार, हिंदी पत्रकारिताःचुनौतियां एवं जन अपेक्षाएं, धरती धन न अपना में पंजाबी दलित वर्ग की स्थिति एवं नारी चेतना का सृजन आदि विशेष रूप से ध्यान देने योग्य लेख हैं। प्रदीप कंवर का यात्रा वर्णन गंभीर है जिससे सरसता प्रभावित हुई है। राजीव गुप्त एवं कालीचरण प्रेमी की लघुकथाएं ठीक ठाक कही जा सकती है। कहानियों में शहतूत पक गए हैं अच्छी व लम्बे समय तक याद रखी जाने वाली कहानी है। निधि भारद्वाज की कहानी भी अच्छी है लेकिन कहीं कहीं इन कथाओं में कथातत्व विलोपित सा हो गया है। देवांशु पाल, यशोदा प्रसाद सेमल्टी, एल.आर. शर्मा तथा जया गोस्वामी की कविताएं समयानुकूल हैं। पत्रिका की अन्य रचनाएं भी अच्छी व पठनीय हैं।
आदरणीय, हिमप्रस्थ पत्रिका की सदस्यता लेने की इच्छुक हूँ. इस बाबत himprasthahp@gmail.com पर दो बार मेल भेज चुकी हूँ. आपसे संपर्क साधना हो तो किस पते पर मेल कर सकती हूँ, कृप्या बताएं. शुक्रिया. - माधवी
+ comments + 2 comments
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
आदरणीय,
हिमप्रस्थ पत्रिका की सदस्यता लेने की इच्छुक हूँ. इस बाबत himprasthahp@gmail.com पर दो बार मेल भेज चुकी हूँ. आपसे संपर्क साधना हो तो किस पते पर मेल कर सकती हूँ, कृप्या बताएं. शुक्रिया.
- माधवी
Post a Comment